Test to Detect Heart Disease: हार्ट हमारे शरीर की पंपिंग मशीन है. यहां से पूरे शरीर को खून पंप होता है. जब खून फेफड़े से ऑक्सीजन खींचकर लाता है तो हार्ट ही इसे पूरे शरीर में पंप करता है. इससे शरीर की प्रत्येक कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचती है. हार्ट का काम एक सेकेंड के लिए बंद नहीं होता है. अगर यह बंद हो गया तो मौत लगभग निश्चित है. इसलिए हार्ट का हेल्दी होना बहुत जरूरी है. हार्ट मसल्स के बने होते हैं. इसका लचीला होना बहुत जरूरी है. वहीं हार्ट से लगने वाली खून की धमनियां भी मजबूत होनी चाहिए. अगर धमनियों में गंदा कोलेस्ट्रॉल जमा होने लगा है तो यह हार्ट पर खून के प्रवाह को कम कर देगा. बदलते लाइफस्टाइल के कारण आज अधिकांश लोग हाई कोलेस्ट्रॉल के शिकार है. इन सभी बातों के मद्देनजर हार्ट को तंदुरुस्त बनाने के लिए समय-समय पर यह जानना जरूरी है कि हार्ट सही है या नहीं. इसके लिए कुछ टेस्ट है जिनसे यह जाना जा सकता है कि हार्ट पर कोई आफत तो नहीं आया है.
हार्ट सही है या नहीं, इसके लिए टेस्ट
1. बीपी-ब्रिटिश हेल्थ सर्विस के मुताबिक हार्ट सही है या नहीं, इसके लिए सबसे पहले बीपी टेस्ट कराना जरूरी है. इसके लिए कुछ दिनों तक बीपी जांच करें. दिन में दो बार आराम की मुद्रा में. इसे सात दिन तक जांचें और इसका औसत यदि 120/80 से ज्यादा आ रहा है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
2. पल्स रेट-पल्स की जांच आप खुद भी कर सकते हैं. इसे भी पहले आराम की मुद्रा में करें. इसके लिए कलाई के दाई तरफ खून की नली को हल्का दबाएं. सामने मोबाइल पर स्टॉप वाच रख लें. अब यह जांच करें कि एक मिनट में पल्स रेट कितना है. सामान्यतया यह 60 से 100 के बीच होना चाहिए. अगर लगातार ज्यादा आ रहा है तो डॉक्टर से संपर्क करें.
3. लिपिड प्रोफाइल टेस्ट-हार्ट पर संकट का सबसे शुरुआती लैब टेस्ट है लिपिड प्रोफाइल टेस्ट. दरअसल, जब खून में हाई कोलेस्ट्रॉल या ट्राईग्लिसेराइड्स की मात्रा हो जाती है तो यह हार्ट पर खून के प्रवाह को रोकने लगता है. इससे हार्ट को बहुत परेशानी होती. लिपिड प्रोफाइल टेस्टसे यह पता चलता है कि आपके खून में गुड कोलेस्ट्रॉल, बैड कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसेराइड्स की मात्रा कितनी है. अगर ज्यादा है तो डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए दवा देते हैं.
4. सी-रिएक्टिव प्रोटीन-सी रिएक्टिव प्रोटीन शरीर में कई बीमारियों के पूर्व संकेत हैं. दरअसल, अंदर किसी भी तरह के इंज्यूरी या इंफेक्शन की स्थिति में खून में इंफ्लामेशन या सूजन बनने लगती है. सी-रिएक्टिव प्रोटीन इस स्थिति में डैमेज टिशू को न्यूक्लियर एंटीजीन के साथ बांध देता है ताकि इससे और अधिक नुकसान न हो. सी-रिएक्टिव प्रोटीन इस टेस्ट से यह पता चलता है कि यह कितना काम करता है. अगर यह कमजोर है तो इससे हार्ट पर खतरा है.
5. इकोकार्डियोग्राम-इसे इको टेस्ट भी कहा जाता है. अगर हार्ट खराब होने से संबंधित कई लक्षण है जैसे कि तुरंत थक जाना, छाती में दर्द, सांस फूलना आदि तो इस स्थिति में डॉक्टर इको टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. इससे हार्ट का साइज और हार्ट के मसल्स किस तरह काम करते हैं, इसका पता चलता है.
6. इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम-इसे ईसीजी टेस्ट कहते हैं. ईसीजी से हार्ट की इलेक्ट्रिकल गतिविधियों का पता चलता है. इससे हार्ट के विभिन्न हिस्सों में क्या हलचल हो रहा है, इसका पता चलता है.
7. ट्रेडमील टेस्ट या स्ट्रेस टेस्ट-इस टेस्ट में ट्रेडमील पर चलाया जाता है, यह पता लगाने के लिए हार्ट पर प्रेशर बढ़ने के बाद हार्ट किस तरह से काम करता है.
8. टिल्ट टेस्ट-इस टेस्ट में डॉक्टर ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट को मॉनिटर करता है और देखता है कि बीपी के हिसाब से हार्ट रेट सही है या नहीं.
9. एमआरआई-अगर इन सभी टेस्टों में बहुत कुछ साफ नहीं है तो डॉक्टर एमआरआई कराते हैं. एमआरआई से यह पता चलता है कि हार्ट में ब्लड की सप्लाई में क्या दिक्कत है. यह पूरा इमेज दे देता है.
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FIRST PUBLISHED : February 26, 2024, 13:14 IST